पट्टे की जमीन पर भिंडी की खेती कर किसान हुआ मालामाल, आप भी ऐसे करें खाद और उर्वरकों का उपयोग

Bhindi ki Kheti : भिंडी की खेती आजकल दुनिया भर में एक आम और लोकप्रिय गतिविधि बन चुकी है। भारतीय किसान इस खेती को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि इसकी मांग बाजार में सालभर बनी रहती है और इससे अच्छी कमाई भी होती है। भिंडी एक स्वास्थ्यवर्धक सब्जी है जिसमें प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट कैल्शियम फास्फोरस विटामिन ‘ए’ बी ‘सी’ थाईमीन और रिबोफ्लेविन जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व पाए जाते हैं। इस सब्जी का सेवन न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है बल्कि किसानों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी है।
उत्तर प्रदेश के निवासी राजकुमार जो वर्तमान में फरीदाबाद के बल्लभगढ़ में रहते हैं पिछले 4 सालों से भिंडी की खेती कर रहे हैं। राजकुमार ने अपनी मेहनत और सही तकनीकों का उपयोग कर एक साल में 1 लाख से 2 लाख रुपए तक की कमाई करना शुरू कर दिया है।
पट्टे की जमीन से कैसे हुए मालामाल?
राजकुमार की सफलता का एक बड़ा हिस्सा पट्टे पर ली गई जमीन का उपयोग है। उन्होंने बताया कि उन्होंने यह खेत पट्टे पर लिया है जिसके लिए वह जमीन के मालिक को पैसे देते हैं और फिर खुद खेती करते हैं। पट्टे की जमीन पर खेती करना कई किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है क्योंकि इसमें कम निवेश में ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। राजकुमार ने भिंडी के अलावा तोरई घीया और मिर्च जैसी फसलों की भी खेती की है जिससे उनकी आय में और वृद्धि हुई है।
फरवरी में भिंडी की बुवाई करने पर राजकुमार ने एक साल में 2 लाख रुपए तक की कमाई की है। यह इसलिए संभव हो सका क्योंकि उन्होंने सही समय पर बुवाई की और आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग किया। पट्टे की जमीन पर खेती करने से राजकुमार को न केवल अच्छी कमाई हुई बल्कि उन्होंने खेती के अन्य विकल्पों का भी सफलतापूर्वक उपयोग किया।
भिंडी की खेती में खाद और उर्वरकों का उपयोग
राजकुमार ने भिंडी की खेती में खाद और उर्वरकों के उपयोग के महत्व पर जोर दिया है। उन्होंने बताया कि बुवाई के समय 50 किलो डीएपी (diammonium phosphate) का उपयोग किया जाता है। पहले खेत की तैयारियों के दौरान डीएपी मिलाया जाता है इसके बाद बीज बोने की प्रक्रिया शुरू होती है। बीज बोने के बाद दोबारा डीएपी डालकर मिट्टी को अच्छी तरह से तैयार किया जाता है। इससे फसल को आवश्यक पोषण मिलता है जो उसकी वृद्धि और उत्पादन में सहायक होता है।
इसके अलावा फसल के विभिन्न चरणों में उचित दवाइयों का उपयोग भी किया जाता है। यह फसल को कीटों और बीमारियों से बचाने में मदद करता है जिससे उत्पादन में कमी नहीं होती है और फसल की गुणवत्ता बनी रहती है। राजकुमार की खेती की तकनीकों ने उन्हें एक सफल किसान बना दिया है जो अपनी फसल से अधिकतम मुनाफा कमा रहे हैं।
कीटों से बचाव के उपाय
भिंडी की फसल में कीटों का प्रकोप एक आम समस्या है लेकिन राजकुमार ने इसके लिए भी प्रभावी उपाय ढूंढ़ निकाले हैं। उन्होंने बताया कि भिंडी में कीटनाशक दवाओं का उपयोग किया जाता है जैसे कि 505 और कालिया। इसके अलावा पाउडर आधारित दवाइयों का भी छिड़काव किया जाता है जिससे कीटों का प्रकोप कम होता है और फसल सुरक्षित रहती है।
ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई फरवरी-मार्च में की जाती है जबकि वर्षाकालीन भिंडी की बुवाई जून-जुलाई में की जाती है। यदि किसान भिंडी की फसल लगातार लेना चाहते हैं तो तीन सप्ताह के अंतराल पर फरवरी से जुलाई के बीच अलग-अलग खेतों में बुवाई कर सकते हैं। इस तरह से किसान लगातार उत्पादन और आय बना सकते हैं।
परिवार की मदद से चल रही है खेती
राजकुमार के लिए उनकी खेती की सफलता का एक और महत्वपूर्ण पहलू उनके परिवार का सहयोग है। राजकुमार के परिवार में कुल 8 लोग हैं जो इस खेती में उनका साथ देते हैं। उनके एक बेटे ने खेती में उनका हाथ बंटाया है जबकि दूसरा बेटा ड्राइवरी करता है। इस तरह से पूरे परिवार का खर्चा भिंडी की खेती से ही चलता है।
राजकुमार ने बताया कि वह भिंडी की खेती से सालाना 2 लाख रुपए तक की कमाई कर लेते हैं जिससे उनके परिवार का सारा खर्च आसानी से चल जाता है। खेती के इस मॉडल ने न केवल उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया है बल्कि उनके परिवार की भी मदद की है।