धान की फसल में यूरिया का छिड़काव करने वाले किसान सावधान, इस रोग की वजह से कम हो जाएगी पैदावार
Paddy Crop : धान की फसल में बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग का सबसे पहला लक्षण पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बों का आना होता है। यह धब्बे अनियमित आकार के होते हैं जो समय के साथ पीले रंग में बदल जाते हैं। जैसे-जैसे यह रोग बढ़ता है पत्तियों के किनारे सूखने लगते हैं और अंततः पूरा पौधा कमजोर हो जाता है।

Delhi highlights, नई दिल्ली : धान की फसल भारतीय किसानों के लिए बेहद खास होती है लेकिन इसमें लगने वाले विभिन्न रोग जैसे बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट (Bacterial Leaf Blight) किसानों की मेहनत को बर्बाद कर सकते हैं। यह रोग न केवल धान की पैदावार को कम करता है बल्कि उसकी गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होता है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे इस रोग को पहचाना जा सकता है और इससे फसल को बचाया जा सकता है।
बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के लक्षण
धान की फसल में बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग का सबसे पहला लक्षण पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बों का आना होता है। यह धब्बे अनियमित आकार के होते हैं जो समय के साथ पीले रंग में बदल जाते हैं। जैसे-जैसे यह रोग बढ़ता है पत्तियों के किनारे सूखने लगते हैं और अंततः पूरा पौधा कमजोर हो जाता है। नियामतपुर कृषि विज्ञान केंद्र के पादप सुरक्षा रोग विशेषज्ञ डॉ. नूतन वर्मा के अनुसार यह जीवाणुजनित रोग है जो विशेष रूप से धान की फसल पर हमला करता है और फसल को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाता है।
बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट का फैलाव
यह रोग मुख्यतः गर्म और नम मौसम में तेजी से फैलता है। खेत में लंबे समय तक पानी का रुकना भी इस बीमारी के प्रसार को बढ़ाता है। खासकर मानसून के मौसम में जब खेतों में पानी जमा रहता है तब इस रोग के फैलने की संभावना सबसे अधिक होती है। इससे संक्रमित पौधे कमजोर हो जाते हैं और उनकी पैदावार में भारी कमी आती है। यह बीमारी अगर समय पर नहीं रोकी गई तो अगले फसल के लिए भी समस्या बन सकती है क्योंकि रोगग्रस्त बीजों के कारण अगली फसल पर भी इसका असर पड़ता है।
इस रोग से बचाव के तरीके
बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट से धान की फसल को बचाने के लिए कुछ विशेष उपाय किए जा सकते हैं। सबसे पहले बीज का उपचार बेहद आवश्यक है। फसल की बुवाई से पहले बीज का सही उपचार करना चाहिए ताकि बीजों में छिपे रोगाणु नष्ट हो सकें। इसके अलावा खेत की सफाई भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। खेत को समय-समय पर साफ रखना और पानी की सही निकासी करना आवश्यक है ताकि रोगग्रस्त पौधों से स्वस्थ पौधों तक संक्रमण न फैल सके।
फसल चक्र का पालन करें
डॉ. नूतन वर्मा के अनुसार प्रतिवर्ष फसल चक्र को बदलना भी इस रोग से बचाव का एक प्रभावी तरीका है। जब फसल काट ली जाती है तो खेत की सफाई अच्छे प्रकार से करनी चाहिए और हर साल अलग-अलग फसलों की बुवाई करनी चाहिए। इससे मिट्टी में रोगाणुओं का जमाव नहीं होता और फसल स्वस्थ रहती है।
यूरिया के स्थान पर अन्य दवाओं का प्रयोग
अगर धान की फसल बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट से संक्रमित हो जाती है तो यूरिया का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए। यूरिया का प्रयोग इस रोग को और भी बढ़ा सकता है। इसके बजाय स्ट्रेप्टोसाइक्लिन और कॉपर ऑक्सिक्लोराइड जैसी दवाओं का उपयोग करना चाहिए। डॉ. नूतन वर्मा का सुझाव है कि 6 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन और 500 ग्राम कॉपर ऑक्सिक्लोराइड को 250 लीटर पानी में मिलाकर एक हेक्टेयर खेत में छिड़काव करें। यह उपचार तब किया जाना चाहिए जब फसल में इस रोग के लक्षण दिखाई देने लगें।