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हरियाणा में खिसकी जजपा की सियासी जमीन, कभी 10 के दम पर दुष्यंत के पास थी सत्ता की चाबी, खतरे में चौटाला की राजनीतिक पारी ?

जजपा के 10 विधायकों में से 6 ने जजपा से नाता तोड़ लिया है जिसमें टोहाना से देवेंद्र बबली, उकलाना से अनूप धानक, गुहला चीका से ईश्वर सिंह, शाहबाद से रामकरण काला, बरवाला से जोगीराम सिहाग और नरवाना से रामनिवास सुरजाखेड़ा शामिल हैं।
 
Haryana Vidhan Sabha Chunav 2024

Haryana Vidhan Sabha Chunav 2024 : हरियाणा की राजनीति में पिछले कुछ समय से जजपा (Jananayak Janata Party) के सामने जो संकट उभरकर आया है वह अब किसी से छिपा नहीं है। सत्ता में साझीदार रही जजपा जिसने 2019 के विधानसभा चुनाव (2019 Assembly Elections) में 10 सीटें जीतकर राजनीतिक संतुलन को अपने पक्ष में किया था आज घर की पार्टी बनकर रह गई है। हाल ही में पार्टी के छह विधायकों ने बारी-बारी से जजपा को अलविदा कह दिया है जो इस बात का प्रमाण है कि पार्टी का जनाधार तेजी से सिमट रहा है।

जजपा से विधायक बिछड़ते गए, संकट गहराता गया

2019 के विधानसभा चुनावों में 10 सीटों पर जीत हासिल करने वाली जजपा को हरियाणा की राजनीति (Haryana Politics) में किंगमेकर का दर्जा प्राप्त हुआ था। पार्टी के प्रमुख दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala) जो तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के प्रतिद्वंदी के रूप में उभरकर सामने आए थे। लेकिन आज की स्थिति पूरी तरह से विपरीत हो गई है। पार्टी के 10 विधायकों में से 6 ने जजपा से नाता तोड़ लिया है जिसमें टोहाना से देवेंद्र बबली, उकलाना से अनूप धानक, गुहला चीका से ईश्वर सिंह, शाहबाद से रामकरण काला, बरवाला से जोगीराम सिहाग और नरवाना से रामनिवास सुरजाखेड़ा शामिल हैं।

इस प्रवृत्ति ने न केवल दुष्यंत चौटाला (JJP Dushyant Chautala) के नेतृत्व पर सवाल खड़े किए हैं बल्कि पार्टी की स्थिति को भी कमजोर कर दिया है। जिन विधायकों ने पार्टी छोड़ी, उनके बारे में कहा जाता है कि वे पार्टी की नीतियों से असंतुष्ट थे और अपनी राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करने के लिए नई दिशा की तलाश में हैं।

राजनीतिक विरोधियों का तंज

जजपा के विधायकों के पार्टी छोड़ने का सिलसिला राजनीतिक विरोधियों के लिए एक बड़ा मुद्दा बन गया है। खासकर कांग्रेस ने इसे लेकर जजपा पर जमकर तंज कसे हैं। कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर ट्वीट कर लिखा, "अगर विधायक भागने का ओलंपिक में कोई गेम होता तो जजपा भी एक गोल्ड मैडल ले आती।" इससे साफ जाहिर होता है कि विपक्ष जजपा के इस संकट को अपनी राजनीतिक लाभ के लिए पूरी तरह से भुनाने की कोशिश कर रहा है।

वहीं बीजेपी भी इस मुद्दे पर सतर्क नजर आ रही है और अब तक इस मामले पर टिप्पणी करने से बचती आई है। लेकिन यह भी साफ है कि जजपा का यह संकट बीजेपी के लिए भी परेशानी का सबब बन सकता है क्योंकि जजपा सरकार में साझीदार थी और इस तरह का घटनाक्रम गठबंधन की स्थिरता को खतरे में डाल सकता है।

जजपा के बचे विधायक

वर्तमान में जजपा के पास केवल 4 विधायक बचे हैं जिनमें से 2 दुष्यंत चौटाला और उनकी मां नैना चौटाला हैं। सूत्रों की मानें तो बाकी बचे दो विधायक भी पार्टी की नीतियों से नाराज हैं और कभी भी पार्टी छोड़ने का फैसला ले सकते हैं। राम कुमार गौतम जो जजपा के प्रमुख विधायकों में से एक हैं ने पहले ही दुष्यंत चौटाला के खिलाफ खुलकर बयान दिया है।

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि 2024 के विधानसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला का राजनीतिक करियर पूरी तरह से दांव पर है। पार्टी का यह आंतरिक संकट न केवल पार्टी के भविष्य के लिए खतरा है बल्कि दुष्यंत चौटाला के व्यक्तिगत राजनीतिक भविष्य को भी संकट में डाल सकता है।