Rupawas Satsang 2024: हरियाणा के सिरसा में कंवर साहेब का सत्संग, लाखों की संख्या में प्रेमियों ने सुने अमृत वचन

Radha Swami: सत्संग का महत्व किसी खेल तमाशे या मेले से नहीं आंका जा सकता। यह वह सच्चा मार्ग है जो अध्यात्म प्रेमियों को इस काल माया से मुक्ति का घाट प्रदान करता है। जो भी अमूल्य वस्तु होती है वह उतनी ही मेहनत भी मांगती है। सत्संग के माध्यम से संतजन हमें बताते हैं कि जब दुनियादारी की छोटी से छोटी वस्तु भी समय, लग्न और मेहनत मांगती है तो जो वस्तु हमारे सम्पूर्ण कल्याण की है, उसकी लग्न और मेहनत की तो कोई सीमा नहीं हो सकती।
नाथूसरी चौपटा के समीप गांव रूपावास में साध संगत को संबोधित करते हुए परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने इन्हीं विचारों को साझा किया। उन्होंने फरमाया कि सत्संग वह पवित्र स्थल है, जहां से आत्मा को शुद्ध करने का मार्ग प्रशस्त होता है। यहाँ पर प्राप्त ज्ञान और सत्संग की शिक्षा व्यक्ति को इस माया के चक्र से मुक्त करने में सहायक होती है।
कथनी का गुरु नहीं, करनी का गुरु ही करता है कल्याण
हुजूर कंवर साहेब जी महाराज ने स्पष्ट किया कि जैसे खाली कुआँ किसी पथिक की प्यास नहीं बुझा सकता वैसे ही केवल कथनी का गुरु कभी किसी का कल्याण नहीं कर सकता। कल्याण तो वही गुरु कर सकता है जो स्वयं भी उस मार्ग पर चला हो और जिसे शब्द भेदी कहा जाता है।
गुरु वह है जो आपके ज्ञान चक्षु खोल कर आपका विवेक जागृत करता है। संतजन अपनी कमाई हुई दौलत को मरहमी जीवों में बांटते हैं। जिस प्रकार हाथ से फेंका हुआ तीर किसी को घायल नहीं कर सकता उसी प्रकार केवल कथनी से कोई ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमें अपने अनुभवों के आधार पर गुरु को धारण करना पड़ेगा।
सतगुरु, सत्संग और सतनाम से नाता अटूट होता है
हुजूर महाराज जी ने बताया कि संसार के जितने भी रिश्ते-नाते हैं वे एक न एक दिन टूटने ही वाले हैं। केवल सतगुरु, सत्संग और सतनाम से नाता ही अटूट होता है। यह नाता वही है जो व्यक्ति को सही मार्ग पर चलने का संकल्प देता है। कितने ही तारे और चांद टिमटिमा लें लेकिन पूर्ण रोशनी सूर्य के निकलने से ही होती है। उसी प्रकार सतगुरु की कृपा से ही हमें आत्मा की वास्तविक शांति और मोक्ष प्राप्त हो सकती है।
कर्म करने से पहले हमें सोचना चाहिए कि ये कर्म हमें किस दिशा में ले जाएगा। आज के समय में शराब, कवाब और विषय विकारों में फंसकर हमने अपने कर्म बहुत ज्यादा बिगाड़ लिए हैं। हमारी रूह हंस रूप थी लेकिन हमने अपने मलिन कर्मों से इसे काग रूप बना लिया है। इंसान का बुरा कोई और नहीं कर सकता बल्कि इंसान खुद अपने कर्मों से अपना बुरा करता है।
गुरु महाराज जी ने बताया कि चार जून, चौरासी लाख योनियों में इंसान की योनि सबसे उत्तम मानी गई है। और इंसानों में भी वह सबसे उत्तम है जिसने परमात्मा की भक्ति कमाई है। इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन खुद उसका अविवेक और अनुचित कर्म होते हैं। जिस नाम सुमिरन से सुख ही सुख मिलते हैं उसे हमने अपने जीवन में आखिरी पायदान पर धकेल दिया है। कर्मों का कर्ज तब तक आपके लेखे में लिखा रहता है जब तक उसका पूर्ण हिसाब नहीं हो जाता चाहे कितनी ही योनियों में जन्म लेना पड़े।
तन-मन-धन की सच्ची भेंट
जब हम अपने तन, मन और धन को सतगुरु को सौंप देते हैं तो हमें उसे इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं होता। जो चीज आपकी रही ही नहीं उसका इस्तेमाल करने का अधिकार भी आपके पास नहीं होता। जब आप अपने तन, मन और धन को गुरु को सौंप देते हैं तो उसका इस्तेमाल भी गुरु ही करेगा। गुरु महाराज जी ने इस संदर्भ में राजा जनक का उदाहरण दिया जिन्होंने अपने गुरु अष्टावक्र को अपने सब कुछ सौंप दिया था।
गुरु आपके धन का भूखा नहीं होता। तन, मन, धन सौंपने का अर्थ है गुरु के प्रति सम्पूर्ण बलिदान। अगर आप गुरु की मौज में रहकर परमात्मा की भक्ति करते हैं तो गुरु आपको शाहों का शाह बना सकता है।
वर्तमान युग में माता-पिता की जिम्मेदारियां और भी बढ़ गई हैं। माता-पिता को बच्चों की इच्छाएं नहीं बल्कि उनकी आवश्यकताएं पूरी करनी चाहिए। खान-पान, जल, वायु और प्रकृति को शुद्ध करने की आवश्यकता है। हमें समझना होगा कि हम विकास के नाम पर विनाश की ओर बढ़ रहे हैं। पहाड़, समुद्र और मैदानों को हमने कंक्रीट की दुनिया में बदल दिया है। हमारी आवश्यकताएं हमें नियंत्रित कर रही हैं न कि हम उन्हें।
हर सांस की कीमत
गुरु महाराज जी ने कहा कि अब भी समय रहते चेत जाओ। एक-एक सांस की कीमत लाख लाल का मोल है इसलिए इसे व्यर्थ मत गंवाओ। हर दिन सुबह-शाम परमात्मा का शुक्राना करो। सब कुछ देने वाला परमात्मा ही है तो उनका एहसान मानने में कैसी शर्म? घर में रहो, कमाकर खाओ, पराई स्त्री और पराए धन से मोह न लगाओ।