सिरसा सांसद की चुप्पी से कांग्रेस के लिए 21 सीटें खतरे में ? हरियाणा में दलित वोट बैंक हो रहा दूर

हरियाणा में कांग्रेस की राजनीति में इन दिनों सिरसा सांसद कुमारी सैलजा की चुप्पी ने बड़ा हलचल मचा रखा है। सिरसा से सांसद कुमारी सैलजा जो राज्य में कांग्रेस के दलित चेहरे के रूप में जानी जाती हैं विधानसभा चुनाव से पहले से ही सुर्खियों से दूर हैं। कांग्रेस की इस चुप्पी ने पार्टी के भीतर की राजनीति को गर्म कर दिया है और पार्टी के हुड्डा गुट में अस्थिरता पैदा कर दी है। आइए जानते हैं इस पूरे घटनाक्रम का हरियाणा की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।
कुमारी सैलजा की चुप्पी का प्रभाव
हरियाणा में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस समय कुमारी सैलजा की चुप्पी बनती जा रही है। उनके समर्थक इस बात से नाखुश हैं कि विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण के दौरान उनके गुट को उचित तवज्जो नहीं दी गई। साथ ही हुड्डा गुट के कुछ नेताओं द्वारा लगातार की जा रही टिप्पणियों ने सैलजा और उनके समर्थकों को आहत किया है। ऐसे में कुमारी सैलजा ने खुद को इस चुनाव से दूरी बनाए रखने का फैसला किया है जो कांग्रेस के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
कुमारी सैलजा की चुप्पी के चलते हुड्डा गुट के अंदर खलबली मच गई है क्योंकि उनकी अनुपस्थिति से पार्टी को दलित वोट बैंक में बड़ा नुकसान हो सकता है। हरियाणा की राजनीति में अनुसूचित जाति का बड़ा वोट बैंक है और कुमारी सैलजा इस वर्ग की सबसे प्रमुख नेता मानी जाती हैं। ऐसे में उनकी चुनावी मैदान से दूरी कांग्रेस के लिए चुनावी नुकसान का कारण बन सकती है।
दलित वोट बैंक पर असर
कुमारी सैलजा हरियाणा में कांग्रेस के सबसे बड़े दलित चेहरे के रूप में जानी जाती हैं। उनके प्रभाव के चलते कांग्रेस को राज्य के दलित वोटर्स का बड़ा समर्थन मिलता रहा है। हरियाणा में 17 विधानसभा सीटें अनुसूचित जातियों के लिए रिजर्व हैं जिन पर सैलजा का खासा प्रभाव है। इसके अलावा सिरसा और फतेहाबाद की सामान्य सीटों पर भी सैलजा का मजबूत पकड़ है। कुल मिलाकर करीब 21 विधानसभा सीटों पर कुमारी सैलजा का प्रभाव देखने को मिलता है जो इस बार कांग्रेस के लिए चुनौती बन सकती है।
दलित वोट बैंक पर उनकी मजबूत पकड़ होने के बावजूद कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में सैलजा गुट को नज़रअंदाज़ किया जिससे सैलजा और उनके समर्थकों में नाराजगी है। सैलजा ने 12 सितंबर को उम्मीदवारों की अंतिम सूची जारी होने के बाद से खुद को चुनावी गतिविधियों से पूरी तरह से दूर कर लिया है। इसका सीधा असर पार्टी के दलित वोट बैंक पर पड़ सकता है क्योंकि उनके समर्थक इस बार कांग्रेस से दूर हो सकते हैं।
हुड्डा गुट में अस्थिरता
कुमारी सैलजा की चुप्पी से कांग्रेस के भीतर हुड्डा गुट में भी तनाव देखा जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गुट इस चुनाव में सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए बैठा है। हालांकि सैलजा के समर्थन के बिना हुड्डा के लिए यह राह आसान नहीं होगी। दलित वोट बैंक की महत्ता को देखते हुए सैलजा का चुनावी मैदान से दूर रहना हुड्डा गुट के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है।
हुड्डा गुट में यह डर है कि सैलजा के न होने से उनके समर्थक कांग्रेस से विमुख हो सकते हैं और विपक्षी दलों का समर्थन कर सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो यह कांग्रेस के चुनावी समीकरणों को पूरी तरह से बदल सकता है और पार्टी को सत्ता से दूर कर सकता है। इसके अलावा पार्टी के भीतर भी असंतोष बढ़ सकता है जो भविष्य में कांग्रेस की स्थिति को कमजोर कर सकता है।
आगामी चुनाव पर असर
हरियाणा में 2024 के विधानसभा चुनाव का माहौल गरम है और सभी पार्टियां अपने-अपने चुनावी समीकरण बनाने में जुटी हुई हैं। इस बीच कांग्रेस के लिए कुमारी सैलजा की अनुपस्थिति एक बड़ी चिंता का विषय बनी हुई है। चुनावी कैंपेन के अंतिम समय में जब सभी बड़े नेता अपने-अपने क्षेत्रों में प्रचार कर रहे हैं कुमारी सैलजा का चुनावी मैदान से दूर रहना कांग्रेस के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है।
इस चुनाव में दलित वोट बैंक का महत्व काफी ज्यादा है और कुमारी सैलजा जैसी नेता की अनुपस्थिति से कांग्रेस को बड़ा नुकसान हो सकता है। सिरसा और फतेहाबाद के अलावा राज्य की कई रिजर्व सीटों पर सैलजा का प्रभाव है और इन सीटों पर पार्टी को सैलजा के समर्थन की कमी महसूस हो सकती है।