धान की अगेती फसल की कटाई शुरू, फिर बढ़ने लगे पराली जलाने के मामले, दिल्ली में इस बार जल्द दस्तक दे सकता है खतरा

धान की अगेती फसल की कटाई शुरू हो चुकी है और इसके साथ ही पराली जलाने के मामले भी सामने आ रहे हैं। इस बार फिर से कई जिलों में किसानों पर जुर्माना लगाया जा चुका है। (24 सितंबर 2024) के अनुसार सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बावजूद पराली जलाने की समस्या पूरी तरह खत्म नहीं हो सकी है। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग किसानों को लगातार पराली जलाने के बजाय प्रबंधन के उपायों को अपनाने के लिए जागरूक कर रहा है।
इस साल खासतौर पर उन गांवों पर ध्यान दिया जा रहा है जो इस मामले में हॉट स्पॉट माने जाते हैं। पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए विशेष टीमें भी बनाई गई हैं। फिर भी प्रदेश के 67 गांव रेड जोन और 147 गांव येलो जोन में शामिल हैं जो समस्या की गंभीरता को दर्शाते हैं।
धान की कटाई और पराली प्रबंधन
किसान धान की अगेती फसल को कंबाइन से कटवा रहे हैं और इसके बाद पराली का सही प्रबंधन करने की बजाय उसे आग के हवाले कर रहे हैं। यह न केवल पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाता है बल्कि खेत की उर्वरक शक्ति को भी खत्म कर देता है। किसानों के लिए जागरूकता कार्यक्रमों के बावजूद वे इस समस्या के राजनीतिक मुद्दा बनने की कगार पर हैं।
कृषि विभाग की प्रोत्साहन योजनाएं
पराली जलाने से रोकने के लिए कृषि विभाग कई प्रोत्साहन योजनाएं चला रहा है। किसानों को प्रति एकड़ 1000 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है और पराली प्रबंधन करने वाले कृषि यंत्रों पर भी अनुदान मिलता है। बावजूद इसके पराली जलाने की घटनाएं पूरी तरह समाप्त नहीं हो पाई हैं हालांकि कुछ कमी जरूर आई है।
38 प्रतिशत कम हुए पराली जलाने के मामले
विभागीय आंकड़ों के अनुसार 2021 में खरीफ सीजन के दौरान 15 सितंबर से 30 नवंबर तक पराली जलाने के 6887 मामले सामने आए थे। 2022 में यह संख्या घटकर 3661 रह गई और 2023 में यह 38 प्रतिशत और घटकर 2303 मामले दर्ज किए गए। हालांकि पिछले साल प्रदेश के 147 गांव रेड जोन और 582 गांव येलो जोन में थे इस साल केवल 67 गांव रेड जोन और 402 गांव येलो जोन में बचे हैं।
जिलों में अलग-अलग प्रभाव
2023 के खरीफ सीजन में कुछ जिलों में पराली जलाने के मामले 5 से 70 प्रतिशत तक कम हुए हैं। इनमें फतेहाबाद, कैथल, जींद, कुरुक्षेत्र, करनाल, पानीपत, सोनीपत, अंबाला और यमुनानगर प्रमुख हैं। वहीं रोहतक पलवल झज्जर और फरीदाबाद में पराली जलाने के मामलों में वृद्धि देखी गई है। इसके विपरीत मेवात, गुरुग्राम और रेवाड़ी जिलों में दोनों वर्षों में कोई मामला दर्ज नहीं हुआ।
किसानों को जागरूक करने के प्रयास
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के एसडीओ डा. देवेंद्र कुहाड़ ने बताया कि पराली जलाने से पर्यावरण के साथ-साथ खेत की उर्वरक शक्ति भी नष्ट होती है। इसलिए किसानों को इसे जलाने के बजाय प्रबंधन करने की सलाह दी जा रही है। इससे खेत की उर्वरक शक्ति बढ़ेगी और पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचेगा। इस वर्ष अब तक जिले में पराली जलाने का कोई मामला सामने नहीं आया है और गांव स्तर पर टीमों द्वारा लगातार किसानों को जागरूक किया जा रहा है।
पराली जलाना क्यों है घातक?
पराली जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ता है और यह खासकर सर्दियों के मौसम में दिल्ली-एनसीआर जैसे क्षेत्रों के लिए एक बड़ा संकट बन जाता है। यह न केवल हवा की गुणवत्ता को बिगाड़ता है बल्कि इसके धुएं से सांस की बीमारियों का भी खतरा बढ़ जाता है। इसके बावजूद कई किसान इसे समय और श्रम की बचत मानते हुए पराली जलाना जारी रखते हैं।
कृषि वैज्ञानिक और पर्यावरणविद इस पर जोर देते हैं कि पराली का उचित प्रबंधन न केवल खेतों की उपजाऊ क्षमता को बनाए रखने में मदद करता है बल्कि लंबे समय में किसानों के लिए फायदेमंद भी साबित होता है। इसके लिए कई तरह के कृषि यंत्र और तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है जिन पर सरकार अनुदान भी देती है।