डीएम के ड्राइवर का बेटा बना एसडीएम, यूपीपीसीएस में हासिल की 40वीं रैंक, जानें उनकी प्रेरणादायक कहानी

Delhi highlights, नई दिल्ली : कामयाबी की राह में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं लेकिन जो इनका डटकर सामना करते हैं उनके लिए रास्ते खुद-ब-खुद खुलते चले जाते हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही प्रेरक कहानी बताने जा रहे हैं जो एसडीएम बने एक युवा की है लेकिन इसमें उनका पूरा परिवार शामिल है। यह कहानी केवल उस युवक की सफलता की नहीं है बल्कि उन माता-पिता की भी है जिन्होंने अपने बेटे को इस मुकाम तक पहुँचाने के लिए हर संघर्ष किया।
एनटीपीसी सोलापुर से एसडीएम की यात्रा
किसी भी सफलता की कहानी तब और प्रेरक हो जाती है जब उसका आधार संघर्ष हो। कल्याण सिंह जो कि अब एक सफल एसडीएम हैं एक समय पर एनटीपीसी सोलापुर महाराष्ट्र में सहायक प्रबंधक (Assistant manager) के पद पर कार्यरत थे। उनके लिए यहां तक की यात्रा आसान नहीं थी। उनकी शुरुआती पढ़ाई बहराइच के नानपारा से हुई जहाँ उन्होंने सेवेंथ डे एडवेंटिस्ट कॉलेज (Seventh Day Adventist College) से 12वीं तक की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University) से बीएससी और एमएससी की पढ़ाई की।
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अपनी शिक्षा को और आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने आईआईटी दिल्ली में एडमिशन लिया। उनकी यह यात्रा यह दिखाती है कि दृढ़ संकल्प और मेहनत के बल पर कोई भी व्यक्ति अपनी मंजिल को पा सकता है।
डीएम के ड्राइवर का एसडीएम बेटा
कल्याण सिंह के पिता जवाहर लाल मौर्या उत्तर प्रदेश के बहराइच में जिला कलेक्टर के ड्राइवर हैं। ऐसे में जब उनके बेटे ने यूपी पीसीएस (Uttar Pradesh Public Service Commission) परीक्षा में 40वीं रैंक हासिल की और एसडीएम बने तो यह उनके लिए गर्व का पल था।
कल्याण सिंह की सफलता केवल उनकी मेहनत का नतीजा नहीं है बल्कि उनके माता-पिता की प्रेरणा और समर्थन का भी परिणाम है। पिता के रिटायरमेंट से ठीक पहले बेटे ने पीसीएस परीक्षा पास की जिससे पिता का सपना पूरा हो गया। यह कहानी हमें यह सीख देती है कि जीवन में कोई भी सपना बड़ा नहीं होता बशर्ते उसे पूरा करने का संकल्प हो।
यूपीएससी में 5 नंबर से चूक
कल्याण सिंह की सफलता की कहानी यहां खत्म नहीं होती। उन्होंने डीएम बनने के लिए यूपीएससी (Union Public Service Commission) की परीक्षा भी दी थी। हालांकि वह इसमें 5 नंबर से चूक गए। यदि वह इसमें सफल हो जाते तो वह और बड़े अधिकारी बन सकते थे।
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यूपीएससी परीक्षा में केवल 5 नंबर की कमी ने उन्हें और भी मेहनत करने के लिए प्रेरित किया। उनका यह प्रयास दिखाता है कि हार से निराश होने की बजाय हमें उससे सीख लेनी चाहिए और अपनी कमजोरी को ताकत में बदलना चाहिए।
परिवार की भूमिका
कल्याण सिंह की इस सफलता में उनके परिवार की अहम भूमिका रही है। उनके पिता ने जीवन भर अपने बेटे के लिए संघर्ष किया ताकि वह अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सके और अपने सपनों को पूरा कर सके। बेटे की सफलता पर पिता का भावुक होना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि अगर उनकी माँ आज जीवित होतीं तो सबसे ज्यादा खुशी उन्हें ही होती।
यह कहानी इस बात का प्रमाण है कि माता-पिता का समर्थन और उनकी दुआएं किसी भी व्यक्ति की सफलता में भूमिका निभाती हैं। यह एक ऐसी प्रेरक कहानी है जो न केवल हमें मेहनत करने के लिए प्रेरित करती है बल्कि यह भी सिखाती है कि जीवन में किसी भी कठिनाई का सामना कैसे करना चाहिए।